उन्हें उकेरो, उन्हें टटोलो !
आज लेखनी खुल कर बोलोज्ञान, ध्यान वैराग्य त्याग के,
पथ पर तुमने हमें चलाया
या बोरा श्रृंगार जलधि में , पथ पर तुमने हमें चलाया
कभी कहा जग झूठी माया
प्रतिस्पर्ध के इस युग में ,
कुछ कहने से पहले तोलो
आज लेखनी खुल कर बोलो , श्रद्धा नेतिकता सब हारी,
पावस में ज्यो ओझल सावन,
देश राम का कहलाता है ,आतंकित करते है रावन
युवकों में तुम विप्लव भर दो
शब्दों के सब तरकस खोलो
भटकी हुई आज तरुनाई,
झूटी राहे मंजिल झूटी
भाई का भाई है बेरी
हमसे धरती माता रूठी
विष तुम पुन: सोंप शंकर को
पियूष अब घर घर में घोलो
आज लेखनी खुल कर बोलो
जड़ में तुम चेतनता लाकर
नस नसमे बिजली भर सकती
चन्द्रह्यास बन परम दुधारी
अरि को तुम आकुल कर सकती
कला है जो सुमुख तुम्हारा
शोंणित में तुम उसे डुबोलो
आज लेखनी खुल कर बोलो
किशोर पारीक"किशोर"
bahut achi kavita he bhai ji
जवाब देंहटाएंhttp://kavyakalash.blogspot.com/
shekhar kumawat
बहुत सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंaap ne baki post par comments ko kyun band kiya
जवाब देंहटाएंshekhar kumawat