किशोर पारीक "किशोर"

किशोर पारीक "किशोर"

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किशोर पारीक 'किशोर' गुलाबी नगर, जयपुर के जाने माने कलमकार हैं ! किशोर पारीक 'किशोर' की काव्य चौपाल में आपका स्वागत है।



मंगलवार, मार्च 30, 2010

मन मेरे, मन मेरे,मन मेरे, मन, क्यों करता इतना नर्तन

मन  मेरे, मन मेरे,मन मेरे, मन
क्यों    करता  इतना   नर्तन
कभी तरंगीत कभी हताशा, पल में तोला पल में माशा
पल में तो कटुता गह लेता, पल में पानी बीच बताशा
पहन सा भारी हो जाता, अगले ही शण तू कण 
मन मेरे, मन मेरे,मन मेरे, मन , क्यों करता इतना नर्तन

जितना भी में तुझको कसता, उतना तू उलझन में फंसता
व्रस्थी बिंदु सम गिरे धूलि में, अथवा गिरा पंक में धंसता
कंकर पत्थर छोड़ बीनना, उज्जवल मोती बन
मन मेरे, मन मेरे,मन मेरे, मन, क्यों करता इतना नर्तन

उड़े पहाड़ों की श्रेणी  में, कभी चंचला की वेणी में
लिया नहीं संगम में ग़ोता,  नहीं नहाया तिरवेनी में
कबीर की चादर हेरी ना, मीरां का मोहन
मन मेरे, मन मेरे,मन मेरे, मन, क्यों करता इतना नर्तन

मन दसकंदर  को जब जीता, तब विमुक्त शीतलता  सीता
सब ग्रंथों में यही लिखा है, यही कृष्ण अर्जुन की गीता
मनके आगे जो भी हारा, वही रावण और दशानन
मन मेरे, मन मेरे,मन मेरे, मन, क्यों करता इतना नर्तन

दृग मूंदे में ध्यान लगता, मुझे छोड़  तू भागा जाता
स्थीर देह चेतना अस्थिर, जाने कहाँ कहाँ भरमाता
जड़ता तुझसे  लिपटी पगले, बन जा तू चेतन
 मन मेरे, मन मेरे,मन मेरे, मन, क्यों करता इतना नर्तन

मन कुल दीपक मन कुलघाती,मन है दूल्हा आप बाराती
मन ही सीधी -साधी गैया, मन ही है ऐरावत हाथी
मन मेनिज प्रतिबिम्ब देखले, मन अपना  दर्पण
मन मेरे, मन मेरे,मन मेरे, मन, क्यों करता इतना नर्तन